"पहला प्यार"
भाग 1: वो पहली मुलाक़ात
बारिश की हल्की फुहारें पड़ रही थीं। कॉलेज का पहला दिन था। यूनिफॉर्म में लड़के-लड़कियाँ नए जोश और घबराहट के साथ एक-दूसरे को देख रहे थे। उसी भीड़ में था आरव, एक शांत, संकोची लेकिन दिल का साफ लड़का। उसने अभी-अभी 12वीं पास करके शहर के सबसे बड़े कॉलेज में दाखिला लिया था।
कॉरिडोर में भागते हुए उसकी नज़र एक लड़की पर पड़ी — सिया।
सिया का चेहरा भीगी ज़ुल्फ़ों से ढका था, और उसके होंठों पर एक मासूम मुस्कान थी। आरव उस पल में बस उसे देखता ही रह गया। कुछ तो था उसमें — एक अपनापन, एक जादू।
"Excuse me, क्या ये बी.ए सेकंड ईयर की क्लास है?" सिया ने पूछा।
आरव थोड़ी देर चुप रहा, फिर हड़बड़ाते हुए बोला, "न-नहीं... मेरा भी पहला दिन है।"
दोनों हँस पड़े।
भाग 2: दोस्ती से शुरुआत
धीरे-धीरे आरव और सिया की बातचीत बढ़ने लगी। लंच ब्रेक में साथ बैठना, लाइब्रेरी में किताबें ढूँढना, और कभी-कभी कॉलेज के बाहर चाय की दुकान पर बैठना – ये सब उनकी दिनचर्या बन गई।
सिया खुली किताब थी – हँसमुख, बातूनी और हर किसी से घुल-मिल जाने वाली। वहीं आरव थोड़ा reserved था, लेकिन सिया के साथ रहते-रहते वह भी खुलने लगा।
एक दिन सिया ने पूछा, "तुम इतने शांत क्यों रहते हो?"
आरव मुस्कुराया, "शायद इसलिए कि ज़िंदगी अब तक मुझे चुप रहना ही सिखाती आई है।"
सिया ने उसका हाथ थामते हुए कहा, "अब मैं तुम्हारी ज़िंदगी में हूँ न, तो सब कुछ बदल दूंगी।"
भाग 3: एहसास
एक दिन आरव सिया को देखने नहीं आया। पूरे दिन वो कॉलेज में नहीं दिखा। सिया बेचैन हो गई। कॉल किया, मैसेज किया, लेकिन कोई जवाब नहीं।
अगले दिन वो कॉलेज आया तो चेहरा मुरझाया हुआ था।
"क्या हुआ था?" सिया ने चिंता जताई।
आरव ने कहा, "पापा की तबीयत खराब थी। हॉस्पिटल में थे।"
सिया ने गले लगाकर कहा, "अब सब ठीक है न? मैं हूँ तुम्हारे साथ।"
उसी दिन आरव को एहसास हुआ — वो सिया से प्यार करता है।
लेकिन कह नहीं पाया।
भाग 4: इज़हार
कुछ हफ्तों बाद कॉलेज में एक फेस्ट हुआ। रंग-बिरंगी लाइट्स, गानों की धुन और हर तरफ़ खुशियों का माहौल था।
सिया ने आरव से कहा, "आज मैं तुम्हारे लिए कुछ स्पेशल गाने जा रही हूँ। सुनना ज़रूर।"
स्टेज पर सिया ने गिटार उठाया और गाया:
"तेरा मेरा रिश्ता है कैसे इक पल दूर गवारा नहीं..."
आरव के दिल की धड़कनें तेज़ हो गईं।
फेस्ट खत्म होने के बाद दोनों छत पर अकेले खड़े थे।
आरव ने कांपते हाथों से सिया का हाथ पकड़ा और कहा:
"सिया, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ… मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ।"
सिया ने बिना कुछ कहे उसके गाल पर एक हल्का सा चुम्बन दिया और बोली, "मुझे भी तुमसे प्यार है, आरव। बहुत पहले से…"
भाग 5: प्यार की परछाइयाँ
दोनों का रिश्ता अब प्यार के रंग में रंग चुका था। हर दिन एक नई सुबह की तरह होता। लेकिन जैसे हर कहानी में एक मोड़ आता है, वैसे ही इनकी कहानी में भी आया।
सिया को एक स्कॉलरशिप मिली – लंदन यूनिवर्सिटी में पढ़ने की।
"आरव, मैं क्या करूं? ये मौका ज़िंदगी में दोबारा नहीं मिलेगा।"
आरव ने मुस्कुराते हुए कहा, "जाओ सिया… उड़ जाओ… अपने सपनों के पीछे। मैं यहाँ तुम्हारा इंतज़ार करूंगा।"
आख़िरी मुलाकात में दोनों ने बिना कुछ कहे एक-दूसरे को गले लगाया। आँखों में आँसू थे, लेकिन दिल में वादा – हम फिर मिलेंगे।
भाग 6: वक़्त और दूरी
सिया के जाने के बाद आरव ने खुद को पढ़ाई में झोंक दिया। दिन गुज़रते गए, महीनों में बदल गए। वीडियो कॉल्स, मैसेजेस कभी-कभी हो पाते।
दूरी ने दोनों को कमजोर कर दिया था, लेकिन प्यार आज भी उतना ही गहरा था।
एक दिन सिया का मैसेज आया, "आरव, मैं वापस आ रही हूँ… हमेशा के लिए।"
भाग 7: मिलन
चार साल बाद… वही कॉलेज का गेट… वही पेड़ जिसके नीचे दोनों अक्सर बैठते थे।
आरव वहीं खड़ा था, अब थोड़ा और परिपक्व, लेकिन आँखों में वही इंतज़ार।
सिया गेट से अंदर आई, सूट पहने, बाल खुले, और वही मुस्कान लिए।
आरव ने बस एक ही बात कही:
"बहुत दिन हो गए तुम्हें देखे हुए।"
सिया ने कहा, "अब कभी दूर नहीं जाऊंगी।"
अंतिम पंक्तियाँ
उनकी कहानी आम थी, पर उसमें जो एहसास था, वो खास था।
पहला प्यार कभी भुलाया नहीं जाता, और अगर किस्मत साथ दे, तो वो प्यार लौटकर ज़रूर आता है।